सरयोलसर झील ( Seruvalsar Lake )
आपने आज तक कई चमत्कारी झीलों के बारे में सुना होगा लेकिन आज हम आपको एक ऐसी ही झील Seruvalsar Lake के बारे में बताने जा रहें हैं जिसके बारे में आप यकीनन नहीं जानते होंगे । यह झील कुल्लू के उपमंडल बंजार के जालोरी दर्रा से 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह झील एक खूबसूरत पर्यटन स्थल भी है और यहां हर साल झील के दीदार के लिए हजारों सैलानी आते हैं। इस झील का नाम सरयोलसर झील (Seruvalsar Lake) है।
झील के पानी में जब सूरज की किरणें गिरती हैं, तो नजारा अत्यंत खूबसूरत हो जाता है। झील की ख़ूबसूरती तब कई गुना बढ जाती है जब यह अपना रंग बदलती है। दरअसल जब मौसम खराब होता है या आसमान में बादल छाए हुए होते हैं, तो झील का रंग हल्का काला हो जाता है, जबकि आसमान साफ होता है तो झील शीशे की तरह साफ और चमकदार होती है। सर्दियों के मौसम में यहां भारी बर्फबारी होती है और ये झील भी जम जाती है। यह एक धार्मिक स्थल भी है। यहां इस झील के कई धार्मिक किस्से और कहानियां भी मशहूर हैं।
झील की सफाई करती एक चिड़िया
प्रकृति को सहेजने को लेकर इंसानों में भी जागरूकता की कमी है। ऐसे में अगर आपको यह बताया जाए कि एक चिड़िया ऐसी भी है जो जरा सी भी गंदगी झील में पड़ी नहीं रहने देती तो आपको कैसा लगेगा ? अजीब लगेगा ना, लेकिन है बेहद दिलचस्प। प्रकृति की गोद में अठखेलियां करती सरयोलसर झील (Seruvalsar लेक) की सफाई का जिम्मा एक नन्ही सी चिड़िया ‘ आभी ’ ने संभाल रखा है। शीशे की तरह चमकने वाली इस झील से नजर नहीं हटती। इसे साफ-सुथरी रखने का श्रेय उसी को जाता है। हवा के झोंकें से झील में पत्ता गिरते ही ‘ आभी ’ झट से इसे चोंच में दबाकर झील से बाहर फेंक देती है।
सरयोलसर झील (Seruvalsar Lake) के पास बूढी नागिन का मंदिर
साल में छह महीने बर्फ से जमी रहने वाली सरयोलसर झील पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है। समुद्र तल से 10,230 फुट की ऊँचाई पर स्थित जलोरी दर्रा से सटी सेरोलसर झील से क्षेत्रवासियों की धार्मिक आस्था भी जुड़ी हुई । मान्यता है कि झील में क्षेत्र की आराध्य देवी ‘ बूढी नागिन ’ वास करती है । खास बात यह है कि मन्नत पूरी होने पर श्रद्वालु चढ़ावें के रुप में देसी घी की धार से पवित्र झील की परिक्रमा पूरी करते हैं। देवभुमि हिमाचल का प्रकृति ने दिल खोलकर श्रृंगार किया है। कुल्लू घाटी की नैसर्गिकता के तो फिर कहने की क्या ? यहां के जर्रे-जर्रे में प्रकृति रची-बसी है। यहां दैवीय चमत्कारों की भी कमी नहीं है।
आभी को झील की सफाई करते हुए देखना कौतुहल पैदा करता है। देव नियम का पालन करते हुए आप छुप कर ही आभी को ऐसा करते हुए देख सकते हैं। इसके पीछे धारणा यह भी रही है कि भीड़ में आभी असहज महसूस करती है। हजारों लोगों ने हलकी भूरे रंग की आभी को झील की सफाई करते हुए देखा है। चारों ओर से हरे-भरे जंगल से घिरे रहने के बावजूद झील में ढूंढने से भी एक पत्ता और तिनका नहीं मिल पाता है। झील में रहने वही देवी ‘ बूढी नागिन ’ ने ही आभी को इस काम पर लगाया है। गाय के प्रजनन करने की खुषी में भी लोग देवी मां को देसी घी की धार से चढ़ावा अर्पित करते हैं।
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पांडवों ने यहां की थी चावल की खेती
माना जाता है कि महाभारत काल के दौरान पांडवों ने यहां ( Seruvalsar lake)काफी समय व्यतीत किया था और यहां चावलों की खेती की थी, वो खेत आज भी यहां नजर आते हैं। वहीं स्थानीय लोगों का कहना है कि बूढी नागिन माता के प्रति घाटी के लोगों की काफी श्रद्वा है और ‘ बूढी नागिन ’ को देवी देवताओं की माता का दर्जा हासिल है।
कैसे पहुंचें सरयोलसर झील (Seruvalsar लेक)
बंजार के शोजा में सरयोलसर झील, जलोरी दर्रा (Jalori pass)से लगभग 5 किलोमीटर की पैदल दूरी तय कर पहुुंच सकते हैं। शोजा से निकटतम हवाई अड्डा लगभग 80 किलोमीटर दूर कुल्लू का भुंतर हवाई अड्डा है। शोजा से नजदीकी रेलवे स्टेशन बैजनाथ रेलवे स्टेशन है। यहां आने के लिए पठानकोट से ट्रेन मिलती है। शोजा पहुंचने के लिए कुल्लू से सीधी बस सेवा उपलब्ध है। कुल्लू हिमाचल प्रदेश राज्य परिवहन निगम की बस सेवाओं के माध्यम से प्रदेश और कई प्रमुख शहरों से जुडा हुआ है। शिमला, पठानकोट, चंडीगढ़ और नई दिल्ली से कुल्लू के के लिए बस सेवा उपलब्ध है।