Baglamukhi Devi Mandir : इस मंदिर में होता है बुरी ताकतों का नाश, जानिए कैसे
आज हम आपको जिस मंदिर के बारे में बताने जा रहे है, उस मंदिर में पूजा और हवन करवाने का महत्त्व इतना अधिक है कि भारत देश की प्रथम महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से लेकर कॉमेडी किंग कपिल शर्मा तक यहां आकर माता का आशीर्वाद प्राप्त कर चुके हैं। साथ ही काफी सारे बॉलीवुड स्टार और राजनीति से जुड़े कई लोग यहां अक्सर आकर हवन और पूजा करवाते हैं। माता का आशीर्वाद प्राप्त करने के बाद उनकी सफलता अपनी चरम पर पहुंच जाती है। क्या है इस मंदिर (Baglamukhi Devi Mandir) का इतिहास और इसकी अद्भुत महिमा, इसके बारे में हम आपको इस लेख के माध्यम से बताएंगे तो लेख को अंत तक जरुर पढ़ना। साथ ही आपको मां बगलामुखी (Baglamukhi Devi Mandir) के बारे में जानकार कैसा लगा कोमेंट् करके जरुर बताएं।
बगलामुखी मंदिर (Baglamukhi Devi Mandir) :
वैसे तो भारत में बगलामुखी के तीन सबसे प्रमुख और एतिहासिक मंदिर हैं, जिसमें से दो मध्य प्रदेश में और एक हिमाचल प्रदेश में है। आज हम आपको हिमाचल के इस बगलामुखी के बारे में बताएंगे। बगलामुखी मंदिर (Baglamukhi Devi Mandir) हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले का एक पर्यटक स्थल है, जहां लाखों भक्त हर दिन मां बगलामुखी की पोज्जा व हवन करवाने पहुंचते हैं। इस मंदिर में पूजा के साथ-साथ हवन करवाने का भी काफी महत्त्व है। मंदिर के अंदर भी हवन करने के लिए अनेकों हवन कुण्ड बनाये गए हैं, जहां दिन-रात चोबीसों घंटे हवन होते रहते हैं, इन सब में सबसे ज्यादा महत्त्व है मंदिर के सामने वाले हवन कुण्ड का। इस कुण्ड में हवन करने के लिए घंटों पहले बुकिंग की जाती है और भक्त 3-4 घंटे हवन कुण्ड के खाली होने का इन्तजार करते हैं, तब जाकर भक्तों को यहां हवन करने का अवसर मिल पाता है। यहां पर हवन करवाने का इतना ज्यादा महत्त्व है कि इंदिरा गांधी यहां हवन करवाने आ चुकी है। इसके साथ बॉलीवुड स्टार गोविंदा और कॉमेडी किंग कपिल शर्मा भी हवन करवा चुके हैं। यहां चोबीसों घंटे अग्नि जलती रहती है।
मंदिर का इतिहास (Baglamukhi Mandir ka Itihas) :
यह माना जाता है कि इस मंदिर कि स्थापना द्वापर युग में पांडवों द्वारा अज्ञात वास के दौरान एक ही रात में की गई थी, जिसमें सबसे पहले अर्जुन और भीम द्वारा युद्ध में शक्ति प्राप्त करने के लिए माता की पूजा की गयी थी और उसी समय से यह मंदिर लोगों की आस्था का केन्द्र बना हुआ है। साल भर में देश के अलग- अलग जगहों से लोग यहां पूजा और हवन करवाने आते हैं और उनकी हर मनोकामना हवन करवाने से पूर्ण होती है।
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विजय प्राप्त करने हेतु की जाती मां की अराधना :
भारत के प्रसिद्ध शक्तिपीठों में से एक मां बगलामुखी का मंदिर (Baglamukhi Devi Mandir) कांगड़ा जिले से लगभग 30 किमी दूर, बनखंडी नामक स्थान पर स्थित है। स्थानीय लोगों के साथ-साथ देश विदेश से आने वाले बड़े-बड़े नेताओं, अभिनेताओं और व्यापारियों के लिए भी आस्था का केंद्र है। मां बगलामुखी को 10 महाविद्याओं में से आठवां स्थान प्राप्त है, इस देवी की आराधना विशेष रूप से शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने के लिए की जाती है।
बगुला का रूप धारण कर किया राक्षस का वध :
माता बगलामुखी को पीतांबरी के रूप में भी जाना जाता है। इस कारण मां के वस्त्र, मौली, प्रसाद और आसन से लेकर हर चीज पीली ही होती है। मान्यता है कि युद्ध हो, राजनीति हो या फिर कोर्ट-कचहरी के विवाद माता के मंदिर में यज्ञ करने से सभी की मनोकामना पूरी होती है। इसके अलावा अन्य मान्यता के अनुसार सर्वप्रथम मां बगलामुखी की आराधना सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा ने की थी। कहा जाता है कि ब्रह्मा के ग्रंथ को एक राक्षस द्वारा चुरा लिया गया, जिसके बाद उसे पाताल में छिपा दिया था। माना जाता है कि उस राक्षस को वरदान प्राप्त था कि पानी में मानव और देवता उसे नहीं मार सकते। ऐसे में ब्रह्मा ने माता भगवती का जाप किया, जिसके बाद बगलामुखी की उत्पत्ति हुई। माता ने बगुला का रूप धारण कर उस राक्षस का वध कर बह्मा को उनका ग्रंथ लौटाया।
भगवान राम ने भी की थी मां की अराधना :
त्रेतायुग में मां बगलामुखी को रावण की ईष्ट देवी के रूप में भी पूजा जाता था। रावण ने शत्रुओं का विनाश कर जीत हासिल करने के लिए मां की पूजा की थी। लंका विजय के दौरान जब भगवान राम को इस बात का पता लगा तो उन्होंने भी मां बगलामुखी की आराधना की थी। मां बगलामुखी का यह मंदिर महाभारत काल का माना जाता है।
कैसे पहुंचे मंदिर (Baglamukhi Devi Mandir):
कांगड़ा जिला से बगलामुखी मंदिर की दूरी लगभग 26 किलोमीटर है। अगर आप अपने निजी वाहन के जरिए आ रहे है तो आप करीब 40-45 मिनट में मंदिर पहुंच सकते हैं। इसके अलावा बस सुविधा भी मंदिर के लिए उपलब्ध रहती है। अगर आप हवाई मार्ग से आपने का प्लान बना रहे हैं तो गगल कांगड़ा तक चंडीगढ़ या दिल्ली से फ्लाईट लेकर आ सकते हैं। गगल से लगभग 35 किलोमीटर सड़क मार्ग तय कर आप मंदिर पहुंच सकते है। वहीं रेल मार्ग से भी पठानकोट से कांगड़ा या रानीताल तक ट्रेन मिल जायेगी, जिसके बाद निजी वाहन या बस से जाना पड़ता है।
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