Ambedkar Jayanti 2023 : हर परेशान इंसान के मसीहा थे डॉ भीमराव अंबेडकर, जानिए कैसे
यह कहानी है ऐसे इंसान की जिसने ऐसे भारत में जन्म लिया जहां समाज के उच्च वर्ग के लोग गरीब और दलित वर्ग पर भीषण अत्याचार और शोषण कर रहे थे, लेकिन समाज की इस घृणा, अपमान और तिरस्कार के बावजूद उन्होंने ऐसी शिक्षा हासिल की जिसकी बदौलत वह भारतीय संविधान के निर्माता बन गए। यहां बात हो रही है डॉ भीम राव अंबेडकर की। अत्याचार को सहन करते हुए उसे पावर में कन्वर्ट करना दुनिया में अगर किसी से सीखना है तो वह है डॉ भीमराव अंबेडकर (Bhimrao Ambedkar), स्कूल में पानी पीने का अधिकार नहीं था, स्कूल में घुसने का अधिकार नहीं था, तमाम कठिनाईओं को उन्होंने अपने पावर में तब्दील किया और इतिहास में अमर हो गए। समाज के वंचित दलितों को मुख्य धारा में लाने के लिए उनका संघर्ष हर पीढ़ी के लिए एक मिसाल बना रहेगा। आज हम इस लेख के माध्यम से आपको भीम राव अंबेडकर (Ambedkar Jayanti 2023) से जुड़ी समस्त जानकारियों को साझा करेंगे, जिसको जानने के बाद आप भी भावुक हो उठेंगे। आपको हमारा लेख कैसा लगा कमेन्ट करके जरुर बताएं।
डॉ. भीमराव अंबेडकर ((Bhimrao Ambedkar)
जन्म : 14 अप्रैल, 1891, डॉ. अंबेडकर नगर, भारत
निधन: 6 दिसंबर, 1956 (65 वर्ष की आयु) (दिल्ली) भारत
भूमिका: पूना पैक्ट
Ambedkar Jayanti 2023 :
डॉ. भीमराव अंबेडकर जिन्हें बाबासाहेब अंबेडकर के नाम से भी जाना जाता है, उनका जन्म 14 अप्रैल 1891 को मध्यप्रदेश के महू गावं में पिता रामजी शकपाल एवं भीमाबाई की चौदहवीं संतान के रूप में हुआ था। भारत में उनकी कड़ी मेहनत
और योगदान को श्रद्धांजलि देने के लिए हर साल 14 अप्रैल को अंबेडकर जयंती के रूप में मनाया जाता है। देशभर में हर वर्ष भीम राव अंबेडकर की जयंती 14 अप्रैल को मनाई जाती है।
पारिवारिक जीवन (Ambedkar Family)
अंबेडकर के पिता रामजी ब्रिटिश सेना में एक सेनी थे। परिवार महार जाती से था, जिसे लोग बेहद ही निचले तबके का मानते थे। सेना में काम करते हुए डॉ अंबेडकर के पिता सूबेदार बन गए और वह हमेशा से अपने बच्चों की शिक्षा पर जोर देते
थे। अम्बेडर की माता भीमाबाई का बीमारी के चलते देहांत हो गया। जिसके बाद अंबेडकर सहित चौदह भाई-बहनों की देखभाल उनकी चाची ने कठिन परिस्थियों में रहते हुए की। छुआछूत, घृणा और अपनी हीन मानसिकता की वजह से डॉ भी
अछूतों को भी बिना छुए ही उनका इलाज करते थे। जिसके कारण अंबेडकर के चौदह भाई- बहनों में से केवल तीन भाई और दो बहने ही बच पाई, वाकी सभी आठ भाई-बहन शोषण के कारण मारे गए।
अंबेडकर जयंती का महत्व (Ambedkar Jayanti Significance) :
अंबेडकर जयंती का महत्व इसलिए भी खास है क्योंकि यह जाति आधारित कट्टरता की ओर ध्यान आकर्षित करती है, जो आजादी के बाद अभी तक हमारे समाज में कायम है। हम इस दिवस को मनाकर वंचितों के उत्थान में बाबासाहेब के
योगदान को याद करते हैं। उन्होंने भारतीय संविधान का मसौदा तैयार किया जो जाति, धर्म, नस्ल या संस्कृति की परवाह किए बिना सभी नागरिकों को समान अधिकार देता है। अंबेडकर ने अछूतों के बुनियादी अधिकारों और शिक्षा को बढ़ावा देने
के लिए केंद्रीय संस्था बहिष्कृत हितकारिणी सभा का गठन किया, साथ ही दलितों को सार्वजनिक पेयजल आपूर्ति और हिंदू मंदिरों में प्रवेश करने का अधिकार प्रदान करने के लिए भी आंदोलन किया।
छुआछूत के खिलाफ लड़ी लड़ाई
छुआछूत के खिलाफ लड़ाई लड़ने वाले अंबेडकर का कहना था कि छुआछूत गुलामी से भी बदतर है। बॉम्बे हाई कोर्ट में विधि का अभ्यास करते हुए उन्होंने अछूतों की शिक्षा को बदाव देने की काफी कोशिशें की। इसके अतिरिक्त उन्होंने सार्वजनिक
आन्दोलनों, सत्याग्रहों और जुलूसों द्वारा पेयजल के संसाधन समाज के सभी वर्गों के लिए खुलवाने के साथ अछूतों को भी मंदिर में प्रवेश दिलवाने के लिए संघर्ष किया।
हिंदू धर्म को छोड़ अपनाया बौद्ध धर्म
भीम राव अंबेडकर ने 14 अक्टूबर, 1956 को नागपुर में अपने लाखों समर्थकों के साथ बौद्ध धर्म ग्रहण कर लिया था। वह 1950 के दशक में बौद्ध धर्म के प्रति आकर्षित हुए, जिसके बाद वह बौद्ध सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए श्रीलंका चले
गए। बौद्ध धर्म ग्रहण करने के पश्चात उन्होंने 22 प्रतिज्ञाएं लीं।
पूना पेक्ट (Poona pact)
पूना पेक्ट जिसने भारत की राजनीति में एक बहुत बड़ा परिवर्तन लाया। 1932 में डॉ भीमराव अंबेडकर और महात्मा गांधी के बीच पुणे की यरवडा सेंट्रल जेल में एक विशेष समझौता हुआ था, जिसे पूना पेक्ट कहा जाता है। इस समझौते से
विधानसभाओं में डीस्प्रेट क्लास के लिए सीटें सुरक्षित की गयी थी। द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में बाबासाहिब ने मांग रखी थी कि दलितों को पृथक निर्वाचन क्षेत्र एवं दो वोटों का अधिकार मिलना चाहिए ताकि दलितों का विकास हो सके। दलित
एक वर्ग से सामान्य वर्ग के प्रतिनिधि को चुनेगें और दूसरे वोट से दलित प्रतिनिधित्व को चुनेगें। इस प्रकार दलित वर्ग के प्रतिनिधि को केवल दलित मतदाता द्वारा ही चुना जाएगा। इस प्रस्ताव को 16 अगस्त 1932 को ब्रिटिश प्रधानमंत्री ने
स्वीकार कर लिया। जिसमें दलितों को अलग निर्वाचन मंडल मिल गया। अंग्रेज सरकार ने इस समझौते को संप्रदायिक अधिनिर्णय (कम्युनल एवार्ड) में संशोधित के रूप में अनुमति प्रदान की थी। जब गांधी को यह बात पता चली तो उन्होंने
ब्रिटिश प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखी कि इस क़ानून को बदल दिया जाए, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला, तब 20 सितम्बर 1932 को गांधी ने इसके खिलाफ अनशन प्रारंभ कर दिया, उस समय गांधी जी यरवडा जेल में बंद थे। भूख हड़ताल पर बैठे
गांधी जी का स्वास्थ्य दिन-प्रतिदिन खरब होता जा रहा था और इधर डॉ भीम राव अपनी प्रथक निर्वाचन क्षेत्र की मांग पर डटे हुए थे। गांधी जी की स्थिति नाजुक हो चुकी थी। बाबा साहब को बहुत बड़ा निर्णय करना था। एक तरफ करोड़ों दलितों
का भविष्य दाव पर लगा हुआ था और एक तरफ गांधी जी का जीवन। अंत में बाबा साहब ने करोडों दलितों को भुलाकर गांधी जी को जीवनदान दिया। इसके बदले कम्युनल अवार्ड्स से मिली 71सीटों के बदले, 148 सीट मिला, दलितों को हर प्रांत
में शिक्षा अनुदान, बिना भेदभाव के दलितों को सरकारी क्षेत्र में भर्ती करने पर सहमति बनी। बाबा साहिब 1942 में अपनी पुस्तक state of minority में लिखते हैं, पूना पेक्ट पर हस्ताक्षर करते हुए मेरे आंसू छलक उठे क्यूंकि मैंने करोड़ों दलितों के
साथ धोखा किया वे पूना पेक्ट को गांधी जी के द्वारा खेल का एक नाटक करार देते हैं।