InformationalTakshashila University : दुनिया की पहली यूनिवर्सिटी तक्षशिला की कहानी, सिर्फ एक पर
05 May 2023 5 mins read

Takshashila University : दुनिया की पहली यूनिवर्सिटी तक्षशिला की कहानी, सिर्फ एक पर

05 May 2023 5 mins read

आप सभी ने दुनिया की सबसे पहली यूनिवर्सिटी तक्षशिला का नाम तो सुना ही होगा। जिस दौर में यूरोप और अमेरिका के लोग जंगल और गुफाओं में रहकर जीने के गुर सीख रहे थे। उस दौर में भारत के लोग तक्षशिला यूनिवर्सिटी  के माध्यम से अलग-अलग विषयों के ज्ञान अर्जित कर रहे थे। हजारों छात्रों को पढ़ाने वाले इस विश्वविद्यालय का इतिहास काफी गौरवशाली रहा है, लेकिन फिर भारत पर आक्रमणकारियों के हमले शुरू होते ही तक्षशिला विश्विद्यालय भी इस आक्रमण का शिकार हो गयी और यह विश्वविद्यालय इतिहास के पन्नों में दफ़न हो कर रह गया। आज के इस लेख में हम आपको इतिहास के पन्ने पलटकर इस विश्वविद्यालय के बारे में पूरी जानकारी प्रदान करेंगे। भारत के गौरवशाली इतिहास की पहचान तक्षशिला  के बारे में जानने के लिए इस लेख को अंत तक पढ़ना।

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तक्षशिला का इतिहास

तक्षशिला प्राचीन भारत में गान्धार जनपद कि राजधानी और एशिया में शिक्षा का प्रमुख केन्द्र माना जाता था। ऐसा कहा जाता है कि तक्षिला विश्विद्यालय छठी से सातवीं इस्वी पूर्व में बनकर तैयार हुआ था। इसके बाद से इस विश्वविद्यालय में भारत से ही नही बल्कि एशिया भर से लोग पढ़ने के लिए आया करते थे। तक्षशिला यूनिवर्सिटी प्राचीन समय में भारत का हिस्सा थी, लेकिन 1947 के बाद जब भारत से पाकिस्थान अलग हुआ तब यह पाकिस्तान के हिस्से में चली गई। वर्तमान में तक्षशिला विश्वविद्यालय पाकिस्तान में रावलपिंडी से लगभग 50 किमी पश्चिम में स्थित है। साथ ही यह इस्लामाबाद से लगभग 35 किलोमीटर दूर स्थित है। इसे हिंदू और बौद्ध शिक्षा का केंद्र माना भी जाता था।

तक्षशिला शहर की स्थापना

ऐसा माना जाता है कि तक्षशिला शहर कि नींव भगवान श्री राम के छोटे भाई भरत ने अपने पुत्र तक्ष के नाम पर की थी। उनके बाद यहां पर बहुत से राजा- महाराजाओं का राज रहा। तक्षशिला विश्वविद्यालय बड़े पैमाने पर पोस्ट ग्रेजुएशन स्टडीज का हब था।

तक्षशिला विश्विद्यालय पर हमले

तक्षशिला विश्विद्यालय का सांस्कृतिक और भगोलिक महत्त्व काफी ज्यादा था इसलिए कई शासकों ने तक्षशिला पर हमले किए। जिनमें यूनानी, कुषाण और फारसी शासक शामिल थे। आखिरकार पांचवीं शताब्दी तक हूण जनजाति ने तक्षशिला को पूरी तरह से नष्ट कर दिया था। इस प्राचीन शेहर को उन्सवीं शताब्दी में सर अलेक्जेंडर कनिंघम ने खोजा था।

कैसे होता था दाखिला

तक्षशिला विश्वविद्यालय  अपने समय का सबसे बेहतरीन शैक्षणिक संस्थान था। यह सेंकडों वर्षों तक अस्तित्व में रहा। यह हिंदुओं की भूमि में था। विश्वविद्यालय में दुनिया के विभिन्न हिस्सों से दस हजार से अधिक छात्र थे। वे सभी यहां ज्ञान व शिक्षा प्राप्त करने के लिए आये थे। तक्षशिला विश्विद्यालय की परीक्षा भी काफी कठोर थी और योग्यता पर आधारित थी। कहा जाता है कि हर तीन आवेदकों में से सिर्फ एक छात्र का ही दाखिला इस विश्विद्यालय में हो पाता था।

पढ़ाने का अनूठा तरीका

तक्षशिला विश्वविद्यालय में कोई संरक्षित पाठ्यक्रम या शिक्षा का तरीका नहीं था. यहां कई महान शिक्षकों ने बड़ी संख्या में छात्रों को पढ़ाया। छात्र किसी भी शिक्षक की कक्षा में उपस्थित हो सकते थे, जहां से वे सीखना चाहते हो। वहीँ शिक्षक भी अपनी पसंद के आधार पर किसी भी संख्या में छात्रों को पढ़ाते थे। किसी भी राजा या शासक ने तक्षशिला के कामकाज में हस्तक्षेप करने की कोशिश नहीं की।

कितनी थी तक्षशिला की फीस

तक्षशिला विश्वविद्यालयछात्रों को कभी कोई फीस नहीं देनी पड़ी, क्योंकि किसी चीज के बदले में ज्ञान बेचना आमतौर पर गलत था। कोई सरंक्षित परीक्षा या ग्रेडिंग सिस्टम भी नही होता था। शिक्षक ही तय करता था कि छात्र की शिक्षा कब खत्म होगी।

आयुर्वेद विज्ञान का सबसे बड़ा केन्द्र

जब संसार में चिकित्सा शास्त्र की परंपरा भी नहीं थी तब तक्षशिला आयुर्वेद विज्ञान का सबसे बड़ा केन्द्र था। जातक कथाओं और विदेशी पर्यटकों के लेख से पता चलता है कि यहां के स्नातक मस्तिष्क के भीतर एवं अंतड़ियों तक का ऑपरेशन बड़ी आसानी से कर लेते थे। इसके अलावा अनेक असाध्य रोगों के उपचार सरल व सुलभ जड़ी बूटियों से किया करते थे। साथ ही अनेक दुर्लभ जड़ी-बूटियों का भी उन्हें विशेष ज्ञान था। इस दौर में शिष्य आचार्य के आश्रम में रहकर विद्याध्ययन करते थे।

शुल्क और परीक्षा

शिक्षा पूरी होने के बाद परीक्षा ली जाती थी। उस समय तक्षशिला यूनिवर्सिटी से स्नातक की पढाई पूरी करना अत्यंत गौरवपूर्ण माना जाता था। इस यूनिवर्सिटी में धनी तथा निर्धन दोनों तरह के छात्रों के अध्ययन की सुविधा थी। धनी विद्यार्थी आचार्य को भोजन, निवास व अध्ययन का शुल्क देते थे और निर्धन छात्र अध्ययन करते हुए आश्रम के कार्य करते थे। इसके अतिरिक्त शिक्षा पूरी होने पर वे शुल्क देने की प्रतिज्ञा करते थे। प्राचीन साहित्य से पता चलता है कि तक्षशिला विश्वविद्यालय में पढ़ने वाले उच्च वर्ण के ही छात्र होते थे। सुप्रसिद्ध विद्वान, चिंतक, अर्थशास्त्री चाणक्य, कूटनीतिज्ञ ने भी अपनी शिक्षा यहीं पूर्ण की थी। जिसके बाद वे यहीं शिक्षण कार्य करने लगे। उन्होंने यहीं से अपने ग्रंथों की रचना की थी।

पाठ्यक्रम

अगर आपको लगता है कि कई विभागों के साथ- साथ कई विशेषज्ञता पाठ्यक्रम एक आधुनिक संवेदनशीलता के दिमाग की उपज है तो यह समय की आप धारणा बदल दें। विश्वविद्यालय कई विषयों के पाठ्यक्रम उपलब्ध करता था, जैसे भाषाएं, दर्शन शास्त्र,व्याकरण, चिकित्सा, शल्य चिकित्सा, कृषि, भूविज्ञान, ज्योतिष, खगोल शास्त्र, ज्ञान-विज्ञान, समाज-शास्त्र, धर्म, तंत्र शास्त्र, मनोविज्ञान और योगविद्या इत्यादि। साथ ही विभिन्न विषयों पर शोध का भी प्रावधान था। शिक्षा की अवधि लगभग 8 साल तक की होती थी। विशेष अध्ययन के अतिरिक्त वेद, घुड़सवारी, तीरंदाजी, हाथी का संधान व एक दर्जन से अधिक कलाओं की शिक्षा दी जाती थी। बता दें उस दौर में तक्षशिला के स्नातकों का हर स्थान पर बड़ा आदर होता था। छात्र 15 से 16 वर्ष की अवस्था में प्रारंभिक शिक्षा ग्रहण करने के लिए आते थे। विद्यार्थी अपने आचार्य के निरीक्षण में रहते थे, वहीं आचार्य भी अपने विद्यार्थियों के जीवन को सुधारने पर अत्यधिक जोर देते थे। पढाई के दौरान अनुशासन पर विशेष ध्यान दिया जाता था और अनुशासन भंग करने वाले विद्यार्थी को दंड देने का प्रावधान भी था।

प्रवेश परीक्षा लेना होता था मुशिकल

आपको जानकर हैरानी होगी कि तक्षशिला में आजकल के विश्विद्यालय की तरह कोई सिलेबस नहीं था। उस काल में कई महान शिक्षकों ने बड़ी संख्या में छात्रों को शिक्षा प्रदान की थी। साथ ही उस समय छात्र अपनी इच्छानुसार किसी भी शिक्षक की कक्षा में बैठ कर पढ़ सकता था। इसी तरह शिक्षक भी अपनी पसंद के आधार पर छात्रों को पढ़ा सकते थे। इस यूनिवर्सिटी में भले ही कोई सिलेबस नहीं था, लेकिन यहां की प्रवेश परीक्षा काफी कठिन थी। हर 10 में से सिर्फ 3 छात्र ही परीक्षा में पास होते थे।

शिक्षक बताते थे, कब होगी पूरी शिक्षा

इस विश्विद्यालय की एक खास बात यह भी है कि यहां कोई ग्रेडिंग सिस्टम नहीं था। साथ ही छात्र की शिक्षा कब खत्म होगी, इसकी जानकारी शिक्षक के द्वारा दी जाती थी। इसके अलावा शिक्षा के अंत में एक सांकेतिक गुरू दक्षिणा जरूर स्वीकार की जाती थी।

देश के कोने कोने से आते थे विद्यार्थी

देश के कोने- कोने से विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करने के लिए तक्षशिला का रुख करते थे। जिसमें पाटलीपुत्र, वाराणसी, मिथिला, राजगृह, उज्जयिनी सहित अन्य नगरों के विद्यार्थी होते थे, जो यहां ज्ञान गरिमा से परिचित होने के लिए आते थे। इस दौरान आयुर्वेद के महान विद्वान जीवक ने तक्षशिला में रहकर ही अध्ययन किया था। साथ ही अनेक सम्राटों व प्रसिद्ध विद्वानों ने भी तक्षशिला विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त की थी। इसके अतिरिक्त कौशल नरेश प्रसेनजित, महान अर्थशास्त्री कौटिल्य, चन्द्रगुप्त मौर्य, वैयाकरण पाणिनि व पतंजलि यहां से शिक्षा प्राप्त कर अपने- अपने क्षेत्र में विख्यात हुए थे।

विश्व प्रसिद्ध आचार्यों द्वारा शिक्षा देने का कार्य

देश के कोने- कोने से विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करने के लिए तक्षशिला का रुख करते थे। जिसमें पाटलीपुत्र, वाराणसी, मिथिला, राजगृह, उज्जयिनी सहित अन्य नगरों के विद्यार्थी होते थे, जो यहां ज्ञान गरिमा से परिचित होने के लिए आते थे। इस दौरान आयुर्वेद के महान विद्वान जीवक ने तक्षशिला में रहकर ही अध्ययन किया था। साथ ही अनेक सम्राटों व प्रसिद्ध विद्वानों ने भी तक्षशिला विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त की थी। इसके अतिरिक्त कौशल नरेश प्रसेनजित, महान अर्थशास्त्री कौटिल्य, चन्द्रगुप्त मौर्य, वैयाकरण पाणिनि व पतंजलि यहां से शिक्षा प्राप्त कर अपने- अपने क्षेत्र में विख्यात हुए थे।

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