दुनिया भर में मशहूर है हिमाचल का Malana Village, जानिये क्यों
हमारा भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोतांत्रिक देश कहलाता है, लेकिन आपको यह जानकार काफी हैरानी होगी कि हमारे इस देश में एक ऐसा भी गावं है जहां भारत का कोई भी नियम और क़ानून नहीं चलता। इस अजीज गावं के अंदर न सिर्फ खुद की न्यायपालिका प्रणाली है बल्कि अपना अलग संसद भी है। यहां के लोग मुगल बादशाह अकबर कि पूजा करते हैं और खुद को सिकंदर का वंशज मानते हैं। इस गावं से जुडी हर एक चीज बेहद अजीब और हस्मय नज़र आती है। आज के हमारे इस लेख में हम आपको इस रहस्यमयी गावं की अनसुनी व अनोखी कहानी बताने वाले हैं, इसलिए लेख को अंत तक पढ़ना।
मलाना गावं ( Malana Village )
हमारे देश की सबसे अजीब और रहस्यमय जगहों में शुमार इस गावं का नाम मलाना है। यह हिमाचल प्रदेश के पहाड़ी इलाकों में बसा हुआ है, जो बेहद प्राचीन गावं है और मलाना नाला की घाटी में स्थित है। बताया जाता है कि इस गावं का
इतिहास काफी पुराना है। साथ ही इसको दुनिया का सबसे पहला लोकतंत्र भी माना जाता है। अपने अजीबों रहस्यम किस्सों- कहानियों, रहन-सहन और नियमों की वजह से आज यह गावं भारत के साथ -साथ पूरी दुनिया में प्रसिद्ध हो चूका है। यही
वजह है कि यहां पर हर समय पर्यटकों का आना-जाना लगा रहता है।
Malana village का इतिहास
अगर इस गावं के इतिहास की बात की जाए तो इतिहास की किताबों में इससे जुडी कोई खास जानकारी देखने को नहीं मिलती है, लेकिन यहां के लोगों द्वारा सुनाई जाने वाली कथाओं में यह बताया जाता है कि सबसे पहले इस गावं के अंदर
जमलू ऋषि रहा करते थे, जिसे वे अपना देवता मानते हैं। इनका यह भी मानना है कि जब सिकंदर भारत पर आक्रमण करने के लिए आया था तो वापिस जाते समय उसने अपने कुछ सेनिकों को भारत में ही छोड़ दिया था। बाद में इन्हीं सेनिकों
ने एक साथ मिलकर इस गावं को बसाया था। यही वजह है कि यह लोग आज भी खुद सिकंदर का वशंज मानते हैं। साथ यह लोग कनासी भाषा बोलते हैं जो कि चीनी तिब्बती भाषाओं में से एक है। हैरानी की बात यह है कि इनकी इस भाषा में
कुछ ग्रीक शब्दों का इस्तेमाल भी किया जाता है।
अपना कानून अपना जुडिशियरी सिस्टम
यूं तो यह गावं हमारे भारत का ही एक हिस्सा है, लेकिन यहां रहने वाले लोग न तो खुद को भारतीय मानते हैं और न ही भारत के किसी भी क़ानून को फॉलो करते हैं। उन्होंने अपना खुद का पार्लेमेंट जुडिशियरी सिस्टम और क़ानून व्यवस्था बना
रखी है, जिसको यह हाजारों साल से फॉलो करते आ रहे हैं। इनके द्वारा बनाए गए इस पार्लेमेंट के दो सदन हैं, जिन्हें निचले और उपरी सदन के रूप में पहचना जाता है। इसके निचले सदन का नाम कनिष्ठांग और उपरी सदन का नाम जयेष्ठांग
रखा गया है। इन सदनों की अनोखी बात यह है कि इनमें गावं के प्रत्येक परिवार के एक सदस्य को जरुर शामिल किया जाता है। आमतौर पर घर का सबसे बुजुर्ग व्यक्ति इस पद को हासिल करता है। साथ ही उपरी सदन में अगर किसी सदस्य
की मौत हो जाए तो उस पूरे सदन को दोबारा से बनाया जाता है। सदनों के अलावा इस गावं का अपना खुद का कानून व प्रशासन भी है। जिसमें भारत सरकार भी कोई दखल नहीं देती है। इसके अतिरिक्त इस गावं में अपने खुद के पुलिस
ऑफिसर भी है, जो मलाना के क़ानून को फोल्लो करते हैं।
अंतिम फैसला करता है जमलू ऋषि
गावं के सभी तरह के मामलों को निपटाने और फैसला करने के लिए यहां संसद भवन के रूप में एक चौपाल भी लागई जाती है। सभी तरह के मामलों को सदन के द्वारा फैसला करके ही निपटाया जाता है। यूं तो ज्यादातर मामलों का फैसला
सदन के सदस्यों द्वारा कर दिया जाता है, लेकिन अगर कोई मामला सदन की समझ में न आए तो उसको अंतिम पडाव यानी जमलू देवता के उपर छोड़ दिया जाता है, उनके द्वारा लिया गया फैसला ही आख़री फैसला माना जाता है। कोई भी
व्यक्ति उनके फैसले पर सावल नहीं उठाता।
इस तरह होता है अंतिम फैसला
किसी भी मामले में जमलू देवता के द्वारा जो फैसला किया जाता है उसका प्रोसेस बड़ा ही अजीब है। इस प्रोसेस में जिन दो पक्षों का मामला होता है, उनसे दो बकरे मंगवाए जाते हैं, जिसके बाद दोनों बकरों को चीरा लगा कर बराबर-बराबर जहर
भर दिया जाता है। जहर भरने के बाद बकरों के मरने का इन्तजार किया जाता है और जिस पक्ष बकरा पहला मरता है उसी को दोषी ठहराया जाता है। इस विष से होने वाला फैसला अंतिम माना जाता है. क्यूंकि यह जमलू देवता का फैसला होता
है। इसके अलावा इस गावं में और भी बहुत सी चीजें है जो इसको दुनिया के सबसे अजीज गावं में से एक बनाती है।
किसी भी मामले में जमलू देवता के द्वारा जो फैसला किया जाता है उसका प्रोसेस बड़ा ही अजीब है। इस प्रोसेस में जिन दो पक्षों का मामला होता है, उनसे दो बकरे मंगवाए जाते हैं, जिसके बाद दोनों बकरों को चीरा लगा कर बराबर-बराबर जहर भर दिया जाता है। जहर भरने के बाद बकरों के मरने का इन्तजार किया जाता है और जिस पक्ष बकरा पहला मरता है उसी को दोषी ठहराया जाता है। इस विष से होने वाला फैसला अंतिम माना जाता है. क्यूंकि यह जमलू देवता का फैसला होता है। इसके अलावा इस गावं में और भी बहुत सी चीजें है जो इसको दुनिया के सबसे अजीज गावं में से एक बनाती है।
बादशाह अकबर की करते है पूजा
आपको जानकार हैरानी होगी कि यहां के लोग मुगल बादशाह अकबर की भी पूजा करते हैं। शायद यह दुनिया की अकेली एक ऐसी जगह है जहां बादशाह अकबर को पूजा जाता है। हर साल फरवरी और अगस्त के महीनों में इस गावं के अंदर
फागली नाम का एक त्यौहार मनाया जाता है। इसी त्यौहार के दौरान यह लोग अकबर की पूजा करते हैं। त्यौहार के दिन गावं के लोग जमलू देवता के कुछ पवित्र लेखों और अकबर की सोने से बनी मूर्ति को मंदिर से बाहर लेकर आते हैं। इसके
बाद सभी गावं वालों के सामने पूरे रीति-रिवाजों के साथ जमलू देवता और अकबर की पूजा की जाती है।
अकबर की पूजा करने के पीछे का रहस्य
अकबर की पूजा करने के पीछे इस गावं के लोगों की अपनी एक दिलचस्प कहानी है। बताया जाता है कि अकबर के शासन काल के दौरान उनके कुछ सेनिक टेक्स लेने के लिए मलाना तक पहुंच गए थे, लेकिन जमलू ऋषि के पुजारी ने उन्हें टेक्स
देने से साफ़ इनकार कर दिया था। इस गावं में मंदिरों में पुजारी द्वारा किसी शासक को टेक्स देना एक अपमान की तरह माना जाता था, जब पुजारी ने टेक्स देने से मना किया तो सिपाही गुस्सा हो गए और उन्होंने जबरदस्ती सोने का एक
सिक्का टेक्स के रूप में वसूल कर लिया। जमलू ऋषि ने उन सिपाहियों को जबरदस्ती सिक्का छिनने से रोकने की कोशिश भी की, लेकिन फिर भी वे सिपाही सिक्का लिए बिना नहीं माने। इन सिपाहियों को हैरानी तब हुई जब उन्होने खजाने को
खोलकर देखा। मलाना गावं से लिया सोने का सिक्का हवा में उड़ रहा था। इस बारे में जब बादशाह अकबर को पता चला तो उन्होंने जमलू ऋषि की शक्तिओं पर विशवास नहीं किया और उनकी शक्तिओं पर सवाल खड़ा करना शुरू कर दिया।
अकबर ने जमलू ऋषि के पास पैगाम भेजा कि उनके पास सच में कोई देवीय शक्ति है तो आगरा में बर्फवारी करके दिखाए। बताया जाता है कि अकबर के द्वारा पैगाम भेजने के अगले दिन ही आगरा के अंदर जमकर बर्फ़बारी शुरू हो गयी थी
और बर्फ़बारी का ये नजारा देखकर बादशाह अकबर बेहद हैरान हो गए थे। इसके बाद बादशाह अकबर ने जमलू ऋषि के सम्मान हेतु अपने सोने से बनी एक मूर्ति उन्हें भेंट की और तभी से इस गावं के अनर जमलू देवता के साथ-साथ अकबर की
उस मूर्ति की भी पूजा की जाती है।
कुछ भी छूने पर पाबंदी और जुर्माना
इस गावं की एक और बात जो लोगों को ज्यादा अजीज और रहस्यमयी लगती है। इस गावं में बाहर के किसी भी व्यक्ति को कोई भी चीज़ छूने की अनुमति नहीं है, इसके लिए गावं में जगह-जगह नोटिस भी लगे हुए हैं। जिसमें साफ़-साफ़ लिखा होता है कि उस चीज को छूना मना है। इसके बावजूद भी अगर कोई व्यक्ति उस चीज को छू ले तो उसके उपर एक हजार से पचीस सौ रूपए का जुर्माना लगाया जाता है। इस नियम का पालन करने के लिए टूरिस्ट पर अपनी कड़ी नज़र रखते हैं।
मलाना गांव में पर्यटन
यूं तो यह गावं टूरिस्ट के लिए भी काफी पोपुलर है, इसी के चलते यहां हर समय टूरिस्ट का आना-जाना लगा रहता है, लेकिन फिर भी इस गावं में बाहर के किसी व्यक्ति के ठहरने हेतु कोई व्यवस्था नहीं है। लोग जब भी यहां घूमने के लिए आते हैं तो वे गावं के बाहर कैंप लगाकर रहते हैं या फिर गावं से थोड़ी दूरी पर मौजूद कैफे में किराए का कमरा लेते हैं। इस गावं की लोकप्रियता को देखते हुए यहां बहुत से लोगों ने कैफे का बंदोबस्त किया हया है।
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घंटे की चढ़ाई के बाद पहुंच पाते हैं मलाना
कुल्लू जिले में करीब 12 हजार फुट की ऊंचाई पर बसा यह गांव चारों ओर गहरी खाइयों और बर्फीले पहाड़ों से घिरा हुआ है। इस गांव में अद्भुत नजारे है। दुनिया भर से सैकड़ों पर्यटक हर साल यहां पर घूमने के लिए आते हैं। सबसे नजदीकी
सड़क पार्वती घाटी की तलहटी में बसे जरी गांव तक है, वहां से पैदल चढ़ाई करके 4 घंटे में मलाणा तक पहुंचा जा सकता है।