हिमाचल की संस्कृति कुछ यूं झलकती है प्रदेश के मेले व त्योहारों में
हिमाचल "शाश्वत हिमपात का घर" अपने आप में एक छोटी सी दुनिया है। पारंपरिक भोजन के साथ-साथ यह अपने आप में मेलों और त्योहारों के एक शानदार असंख्य स्थान रखता है, इनका दीवाली, दशहरा और होली आदि धार्मिक मनोभावों से जुड़े समाज पर शैक्षिक, धार्मिक और सांस्कृतिक प्रभाव पड़ता है और ऋतुओं के अनुसार इन्हें रखा जाता है जैसे बैसाखी, ग्रीष्म और शीत पर्व आदि।
कुछ हिस्सों में, लोग कार्यों और त्योहारों को मनाने के लिए एक पारंपरिक सामुदायिक भोजन “धाम” तैयार करते हैं। इस लेख में हम आपको राज्य के विभिन्न हिस्सों (शिमला, चम्बा, सोलन, ऊना, बिलासपुर, मंडी, कांगड़ा, लाहुल स्पीति, हमीरपुर, सिरमौर व कुल्लू ) के पारंपरिक मेलों और त्योहारों के संबंध में कुछ जानकारी साझा करेंगे जिसको जानकर आप हिमाचल को और करीब से जान पायेंगे।
हिमाचल प्रदेश के मेले और प्रसिद्ध त्यौहार
- मंडी शिवरात्रि मेला
- कुल्लू दशहरा
- मिंजर मेला
- नलवारी पशु मेला
- लवी मेला
- हिमाचल हिल्स फेस्टिवल
- समर फेस्टिवल
- हिमाचल विंटर कार्निवाल
- लोसर महोत्सव
- कसोल संगीत समारोह
- फुलाइच महोत्सव
- सायर महोत्सव
- डोंगरी महोत्सव
- हल्दा महोत्सव
- साजो महोत्सव
- पोरी उत्सव
हिमाचल में देवताओं और लोगों का होता है मिलन
हिमाचल की संस्कृति की तरह मंडी की शिवरात्रि कई मायनों में अनोखी है। मंडी के हर गांव के अपने अलग देवता होते हैं। इन्हीं देवताओं की जलेव शिवरात्रि में पहुंचती है और इसे खास बना देती है। देवताओं और लोगों के मिलन का यह महोत्सव इसे खास बना देता है। लोगों की मान्यताओं के अनुसार 1788 में मंडी के राजा ईश्वरी सेन कांगड़ा के महाराजा संसार चंद की कैद से आजाद हुए थे। स्थानीय लोग अपने देवताओं के साथ मंडी पहुंचे। राजा ईश्वरी सेन की रिहाई और शिवरात्रि का एक साथ जश्न मनाया गया। इसी तरह मंडी के शिवरात्रि महोत्सव की शुरुआत हुई, हालांकि इससे जुड़ी और भी कई कहानियां मशहूर हैं।
खास अंदाज में मनाया जाता है कुल्लू दशहरा
हिमाचल प्रदेश के कुल्लू का दशहरा सबसे यूनिक और खास अंदाज में मनाया जाता है। जिस दिन पूरे भारत में विजयदशमी की समाप्ति होती है, उस दिन से कुल्लू में इस उत्सव का रंग और ज्यादा बढ़ने लगता है। कुल्लू में दशहरा उत्सव का आयोजन ढालपुर मैदान में होता है। लकड़ी से बने आकर्षक और फूलों से सजे रथ में रघुनाथ की पावन सवारी को मोटे मोटे रस्सों से खींचकर दशहरे की शुरुआत होती है। इस दौरान राज परिवार के सदस्य शाही वेशभूषा पहनकर छड़ी लेकर खड़े रहते है। यहां के दशहरे में रावण, कुंभकरण और मेघनाद के पुतले नहीं जलाए जाते हैं। कुल्लू में क्रोध, काम, मोह, लोभ और अहंकार के नाश के प्रतीक के तौर पर पांच जानवरों की बली दी जाती है, हालांकि दशहरा के अंतिम दिन लंका दहन जरूर होता है। इसमें भगवान रघुनाथ मैदान के निचले हिस्से में नदी किनारे बनाई लकड़ी की सांकेतिक लंका को जलाने जाते हैं।
यह मेला समाज की जीवन शैली को करता है प्रदर्शित
हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर में लगने वाला नलवारी पशु मेला सात दिनों तक चलता है, जिसमें कोई भी कुश्ती प्रतियोगिताओं और कई अन्य रोचक मनोरंजक गतिविधियों को देखने की उम्मीद कर सकता है। इस मेले में विशेष रूप से पंजाब के नालागढ़ सहित आसपास के इलाकों से मवेशियों को लाया जाता है। इस दौरान, मालिक अपने मवेशियों को सजाने पर काफी ध्यान देते हैं, इसका कारण यह है कि मवेशियों का व्यापार मालिकों के लिए आकर्षक सौदे लाता है। सांस्कृतिक कार्निवाल बिलासपुर न केवल राज्य की कला, संस्कृति और मनोरंजन बल्कि समाज की जीवन शैली को भी प्रदर्शित करता है। परिवार और दोस्त इस मेले में आस-पास के गांवों से आते हैं और इस सांस्कृतिक मिलन में तल्लीन हो जाते हैं।
नेचर की खूबसूरती को करीब से करते हैं महसूस
हरियाली की गोद में हर साल नए साल के स्वागत में ‘ हिमाचल हिल्स फेस्टिवल‘ का आयोजन किया जाता है। इसमें कुछ अलग तरह के संगीत बजाए जाते हैं। लोगों का मानना है कि फेस्टिवल की जगह बेहद खूबसूरत है और उस पर यहां बजने वाला संगीत इसे और भी सुकून भरा बना देता है। दो दिनों तक आप जिंदगी की तमाम परेशानियां भूल जाते हैं, बस नेचर की खूबसूरती को करीब से महसूस कर रहे होते हैं। यही वजह है कि हर साल यहां आने का बेसब्री से इंतजार रहता है।
समर फेस्टिवल शिमला का सबसे प्रतीक्षित त्यौहार
अक्सर लोग गर्मियों की छुट्टियां मनाने के लिए किसी पहाड़ी स्थल का रुख करते हैं। भारत में लोगों की पहली पसंद हिल स्टेशन के रुप में शिमला होती है। शिमला जितना अपनी शांत वादिओं एवं सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है, उतना ही गर्मियों के मौसम में मनाए जाने वाले समर फेस्टिवल के लिए भी यह काफी प्रसिद्ध है। यह त्यौहार हिल स्टेशन के शांत और सुंदर वातावरण में गर्मियों के मौसम का स्वागत करता है। कई दिनों तक चलने वाला यह जीवंत त्यौहार आम तौर पर मई या जून में होता है। साथ ही नए सत्र की शुरुआत को याद करता है।
लवी मेले का अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रहता है क्रेज
लवी हिमाचल प्रदेश का सबसे पुराना व्यापारिक मेला है जो हर वर्ष नवंबर के प्रारंभ में रामपुर बुशहर में मनाया जाता है। रामपुर को किन्नौर का द्वार भी कहा जाता है। लवी मेला तीन दिन चलता है। इस मेले में कच्च तथा आधी बनी ऊनं, ऊनी वस्त्र, पट्टी, नमदा, पश्मीना, चिलगोजा, घोड़े, बछेरे तथा खच्चरों आदि का लाखों रूपयों का व्यापार इन दिनों होता है। पूरे देश से खरीदार रामपुर में इकट्ठे होते हैं क्योंकि ऊन, पशमीना, चिलगोजा तथा अन्य स्थानीय उत्पाद खरीद सकें जिनका भारत में ही नहीं विदेशों में भी बड़ी मांग है।
समृद्धि और खुशी का प्रतीक चम्बा का मिंजर मेला
यूं तो हिमाचल प्रदेश का लगभग हर हिस्सा पर्यटकों को पसंद आता है, लेकिन अगर आप हिमाचल प्रदेश की अनोखी संस्कृति से जुड़ना चाहते हैं तो चम्बा के ऐतिहासिक चौगान में लगने वाला मिंजर मेला उनके लिए काफी बेहतरीन है। यह मेला सावन के दूसरे रविवार से शुरू होकर सप्ताह भर चलता है। मिंजर में हिमाचली पकवान, नाटी और लोक कला के अतिरिक्त खेलकूद और शॉपिंग का आनंद लेने भी लोग यहां पहुंचते हैं। हर दिन अपने आप में खास होता है और सदियों से चली आ रही परंपरा को आगे बढ़ाता है
निष्कर्ष
राज्य के लोग अलग-अलग हिस्सों में चले गए हैं, लेकिन फिर भी जिन लोगों की वंशावली यहां है, वे उत्सव में और मेलों, त्योहारों और पारंपरिक खाद्य पदार्थों की सक्रिय भागीदारी में गर्व महसूस करते हैं। किसी राज्य का विकास उसकी संस्कृति पर भी निर्भर करता है और संस्कृति एक राज्य के लिए विशिष्ट होती है, जिसे राज्य के अलावा कहीं और नहीं देखा जा सकता।