हिमाचल का एक ऐसा मेला जिसमें केवल महिलाएं और बच्चे ही ले सकते हैं भाग, यह है वजह
रावी और साल नदी के मध्य बसा चम्बा शहर जहां कुदरती खूबसूरती की एक दिलकश तस्वीर है, वहीं इस शहर की दास्तां इतिहास के पन्नों में सुनहरे लफ्जों में दर्ज है। इस शहर को 10वीं सदी में राजा साहिल वर्मन ने बसाया था।


भव्य मंदिरों व खूबसूरत महलों से सज्जे चम्बा शहर के लोग राजा साहिल वर्मन के राज में हर प्रकार से सुखी व खुशहाल थे, अगर कोई कमी थी तो बस पानी की।
दो नदियों के बीच में बसे होने के वाबजूद भी चम्बा शहर में पीने का पानी नहीं था।प्रजा का ये दर्द राजा से छिपा नही था, ऐसे में चम्बा की रानी सुनयना प्रजा की प्यास बुझाने की खातिर जिंदा जमीन में दफन हो गई थीं। अगर आप रानी सुनयना के बलिदान की कहानी जानना चाहते हैं तो ब्लॉग को अंत तक पढ़िए।
पानी चाहिए तो देना होगा बलिदान
कहा जाता है कि चम्बा नगर की स्थापना के समय वहां पर पानी की बहुत समस्या थी। इस समस्या को दूर
करने के लिए चम्बा के राजा ने नगर से करीब दो मील दूर सरोथा नाला से नगर तक कूहल द्वारा पानी लाने
का आदेश दिया।
राजा के आदेशों पर कूहल का निर्माण कार्य किया गया और कर्मचारियों के प्रयासों के बावजूद
इसमें पानी नहीं आया। कथा के अनुसार एक रात राजा को स्वप्न में आकाशवाणी सुनाई दी, जिसमें कहा गया
कि पानी के मूल स्त्रोत पर राज घराने में से किसी को बलिदान देना होगा तभी पानी की कमी पूरी होगी। राजा
इस स्वप्न को लेकर काफी परेशान रहने लगा।
इस बीच रानी सुनयना ने राजा से परेशानी की वजह पूछी तो उसने स्वप्न की सारी बात बता दी। लिहाजा रानी ने खुशी से प्रजा की खातिर अपना बलिदान देने की बात कह डाली, हालांकि राजा और प्रजा नहीं चाहती थी कि रानी पानी की खातिर अपना बलिदान दें, लेकिन रानी नेअपना हठ नहीं छोड़ा और लोकहित में जिंदा दफन होने के लिए सबको मना भी लिया।


इस जगह से आखिरी बार निहारा था चम्बा शहर को
आंखों में आंसू लिए जब रानी सुनयना बलिदान देने के लिए महल से निकली तो उनके इस काफिले में चम्बा
की जनता भी शामिल थी। रास्ते में सूही के मढ़ से रानी सुनयना ने आखिरी बार चम्बा शहर को निहारा था
और फिर आगे बढ़ते हुए ये काफिला मलून नामक स्थान पर रुक गया।
ममता और बलिदान की मूर्त रानी सुनयना ने बलिदान देने से पहले कहा ‘मेरी इच्छा है कि मेरी याद में हर वर्ष मेला लगे। इस मेले को सिर्फ स्त्रियां मनाएं और पुरुष इसमें भाग न लें और न ही राज परिवार की बहुएं इस में भाग लें।
इस मेले में पूजा केवल राज परिवार की कुंवारी कन्या के हाथों करवाई जाए।’ बस इतना कहकर रानी सुनयना ने जिंदा समाधि लेली। उसी समय पानी की धार फूट पड़ी और रानी सुनयना का बलिदान चम्बा के लोगों के लिए अमृत बन कर
बहने लगा।
रानी के बलिदान की याद दिलवाता है सुही मेला
सुही माता मंदिर में हर साल रानी की याद में मेला लगता है, पहले यह मेला 15 चैत्र से पूरे एक महीने तक
लगता था, लेकिन अब यह तीन दिन ही मनाया जाता है। मेले का नाम रानी सुनयना देवी के पहले अक्षर से
रखा लगता है।
इस मेले में केवल स्त्रियां और बच्चे ही जाते हैं। मेले के अंतिम दिन शोभायात्रा के समापन के
वक्त रानी सुनयना को समर्पित एक गीत,’गुड़क चमक भाऊआ मेघा हो, बरैं रानी चंबयाली रे देसा हो। किहां
गुड़कां-किहां चमकां हो, अंबर भरोरा घणे तारे हो। कुथुए दी आई काली बादली हो, कुथुए दा बरसेया मेघा हो’,
गाया जाता है। साथ ही एक परंपरा यह भी चली आ रही है कि चाहे कितना भी साफ आसमान हो, इस गीत के
गाने के बाद चम्बा में बारिश जरूर होती है। इसके अतिरिक्त “सुकरात” गीत भी रानी के लिए समर्पित है।
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जिंदा कब्र में दफ़न हो गयी थीं रानी सुनयना
कहा जाता है कि जिस वक्त रानी पानी के मूल स्त्रोत तक गई तो उसके साथ अनेक दासियां, राजा, पुत्र और
हजारों की संख्या में लोग भी पहुंच गए थे। बलोटा गांव से लाई जा रही कूहल पर एक बड़ी क्रब तैयार की गई
और रानी साज-श्रृंगार के साथ जब क्रब में प्रवेश कर गई तो पूरी घाटी आंसुओं से सराबोर हो गई। कहा जाता
है कि क्रब से जैसे-जैसे मिट्टी भरने लगी, कूहल में भी पानी चढ़ने लग पड़ा। चम्बा शहर के लिए आज भी
इसी कूहल में पानी बहता है, लेकिन वक्त के साथ-साथ शहर में अब नलों के जरिए इस कूहल का पानी
पहुंचाया जाता है। इस तरह चम्बा नगर में पानी आ गया और राजा साहिल वर्मन ने रानी की स्मृति में नगर
के ऊपर बहती कूहल के किनारे रानी की समाधि बना दी। इस समाधि पर रानी की स्मृति में एक पत्थर की
प्रतिमा विराजमान है, जिसे आज भी चम्बा के लोग विशेषकर औरतें अत्यन्त श्रद्धा से पूजती हैं।
सुही मेले में पुरुषों से नहीं दूर-दूर का नाता
चम्बा की रानी सुनयना के बलिदान की गाथा समेटे सुही मेले में पुरुषों का दूर-दूर तक कोई नाता नहीं है। मेले
में केवल महिलाएं और बच्चे ही उपस्थिति दर्ज करवाते हैं। छठी शताब्दी में चम्बा की रानी सुनयना प्रजा की
प्यास बुझाने की खातिर जिंदा ज़मीन में दफन हो गई थीं। इसका उल्लेख साहिल वर्मन के पुत्र युगाकर वर्मन
के एक ताम्रलेख में भी मिलता है।
ऐसे बना था सुही माता मंदिर
राजा ने अपनी रानी की याद में सुही माता मंदिर को बनवाया। रानी के बलिदान को याद करने के लिए
बनवाया गया यह मंदिर आज हिमाचल प्रदेश के सबसे प्रसिद्ध स्थलों में से एक है।
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